पत्रों के जवाब लिखते हैं, मिलने वालों से बातचीत करते हैं। अपने कमरे से उठकर बाहर आए।
यूसुफ साहब से हाथ मिलाया। पूछा, "जनाब का नाम?"
"हाँ, एक है, मगर इस वक्त तो यही कि हम सरकारी।"
सेक्रेटरी कुछ सिकंड देखते रहे। पूछा, "क्या हुक्म है?"
"हम मालिका-मकान से मिलना चाहते हैं।"
"उस वक्त दूसरा भी कोई होगा?"
"नहीं।"
"यह नहीं हो सकता।
आपको अपना कुछ पता देना होगा अगर आप अपना नाम नहीं बतलाना चाहते।
फिर किस सरकारी काम से यहाँ आने की जहमत गवारा की, फर्माना होगा और मुझसे।
मैं उनसे अर्ज करूँगा, फिर उनका जवाब आपको सुनाऊँगा।"
"यह ऐसा काम नहीं।"
"मान लीजिए, वह नौकर हैं, खातून की हैसियत से रहने की कैद है ।
"आप पहले फर्मा चुके हैं, कोई दूसरे रहेंगे तो मैं उनसे बातचीत कर सकता हूँ।
फिर कहा, मैं आपसे कुल बातें कह दूँ, आप जवाब ला देंगे अपना नाम या पता बताने के बाद।
यह शायद किसी खास दरजे की खातून के बर्ताव में आता है?